गाजा या गाजा पट्टी का नाम अक्सर आप इस कारण सुनते हैं कि यहां लड़ाई चलती रहती है। गाजा प्रकरण को समझ लेना थोड़ा कठिन इसलिए है कि इसकी स्थिति थोड़ी अजब है। यह फिलिस्तीन क्षेत्र का हिस्सा तो है किंतु भौगोलिक रूप से इससे जुड़ा हुआ नहीं है। उसी तरह जैसे कभी पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान थे। चूंकि फिलिस्तीन अभी स्वतंत्र देश नहीं है इसलिए गाजा भी स्वतंत्र देश नहीं है। फिलहाल संयुक्त राष्ट्र महासभा प्रस्ताव 67/19 के अनुसार, फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र संघ में गैर सदस्य पर्यवेक्षक राज्य’ (Non-Member Observer State) का दर्जा प्राप्त है। इसे परोक्षतः स्वतंत्र देश का दर्जा कहा जा सकता है जो भविष्य में स्वतंत्र देश के रूप में परिणत होगा। फिलिस्तीन के लिए आधिकारिक संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ फिलिस्तीनी प्राधिकरण को मानता है लेकिन फिलिस्तीन का अंग होने के बावजूद गाजा में फिलिस्तीनी प्राधिकरण का धुर विरोधी संगठन ‘हमास’ सत्ता में है। इस्राइल हमास को आतंकवादी संगठन मानता है जबकि हमास इस्राइल के अस्तित्व को नकारता है तथा उसे दुनिया के मानचित्र से हटा देने का उद्देश्य उसने अपने संगठन के चार्टर में लिख रखा है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भले ही फिलिस्तीन को गैर सदस्य पर्यवेक्षक राज्य का दर्जा दे दिया हो किंतु गाजा को अभी भी उसने कब्जे वाला क्षेत्र (Occupied Area) का ही दर्जा दिया हुआ है। गाजा प्रकरण को समझने के लिए हमें जानना होगा-
- क्या है गाजा?
- क्या है गाजा का इतिहास?
- हाल ही में चर्चित क्यों रहा?
- ऑपरेशन प्रोटेक्टिव एज
- युद्ध विराम समझौता
- बार-बार संघर्ष होता क्यों है?
- दोनों पक्षों के तर्क क्या हैं?
- नई स्त्रातजिक एवं राजनीतिक परिस्थितियां
- किसको क्या मिला?
- युद्ध विराम और उसके बाद।
क्या है गाजा?
गाजा, जिसे गाजा पट्टी भी कहते हैं, फिलिस्तीन का एक बहिःक्षेत्र (Exclave Region- किसी देश का वह भाग जो मुख्य भूमि से पृथक हो) है। गाजा पट्टी की भू आकृति एक पट्टी सदृश है जिसकी लंबाई 51 किमी. तथा चौड़ाई 11 किमी. है। इसके दक्षिण-पश्चिम में मिस्र तथा पूर्व एवं उत्तर में इस्राइल है। पश्चिम में भूमध्य सागर है किंतु यह जलीय सीमा इस्राइल के ही नियंत्रण में है।
क्या है गाजा का इतिहास?
ऑटोमन साम्राज्य से ब्रिटिश नियंत्रण तदुपरांत 1947 में संयुक्त राष्ट्र विभाजन योजना के तहत गाजा अरब देशों को आवंटित हुआ जिस पर 1948 के युद्ध में मिस्र ने कब्जा कर लिया। 1948-67 तक गाजा मिस्र के सैनिक प्रशासन में रहा। 1967 के 6 दिवसीय अरब-इस्राइल युद्ध में गाजा इस्राइल द्वारा विजित कर लिया गया। 1967 से 1993 तक गाजा इस्राइल के सैन्य शासन के अधीन रहा। 1993 के ओस्लो समझौते के अनुसार गाजा फिलिस्तीनी प्राधिकरण के न्याय क्षेत्र में आया किंतु संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद एवं महासभा अभी भी गाजा क्षेत्र को इस्राइली अधिकृत फिलिस्तीनी क्षेत्र (Occupied Palestinian Territory) मानते हैं। इसका कारण यह है कि 2005 तक तो यहां इस्राइली सेना विद्यमान थी किंतु 2005 में इस्राइली सेना की वापसी के बाद भी आर्थिक एवं राजनीतिक प्रतिबंध जारी हैं।
हाल ही में चर्चित क्यों रहा?
जून माह में फिलिस्तीन के पश्चिमी किनारा से 3 इस्राइली नवयुवकों की हमास ने अपहरण कर हत्या कर दी। हमास की राजनीतिक शाखा के खालिद मिशेल ने इसे राजनीतिक इकाई का कृत्य होने से इनकार किया किंतु इस बात से इनकार नहीं किया कि यह कार्य हमास के किसी अन्य गुट का हो सकता है। इस घटना के बाद इस्राइल ने सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार कर पूछताछ की। 2 जुलाई को येरूशलम में एक फिलिस्तीनी नवयुवक की हत्या कर दी गयी जिसके संदेह में 6 यहूदी गिरफ्तार किए गए। यहीं से तनाव बढ़ना शुरू हुआ और 7 जुलाई को हमास ने इस्राइल पर रॉकेट से हमला प्रारंभ कर दिया। इस्राइल ने पश्चिमी किनारा में हमास के ठिकानों को नष्ट करने के लिए ‘‘ऑपरेशन ब्रदर्स कीपर्स’ चलाया।
ऑपरेशन प्रोटेक्टिव एज
हमास के रॉकेट हमलों से क्रुद्ध इस्राइल ने 8 जुलाई, 2014 से गाजा क्षेत्र में उसके विरुद्ध ऑपरेशन प्रोटेक्टिव एज (Operation Protective Edge) चलाया। इस ऑपरेशन का उद्देश्य हमास के रॉकेट हमलों को रोकना तथा उसकी सैन्य क्षमता को विनष्ट करना था। ऑपरेशन प्रोटेक्टिव एज के तहत 8 जुलाई को हवाई युद्ध प्रारंभ किया गया था किंतु 17 जुलाई, 2014 से विस्तृत कर इसमें जमीनी हमला भी शामिल कर लिया गया। जमीनी हमले (Ground Invasion) का मुख्य उद्देश्य ‘गाजा की सुरंग प्रणाली’ (Gaza’s Tunnel System) को नष्ट करना था। ऑपरेशन 50 दिवसों तक चलता रहा, जब तक कि 26 अगस्त को युद्धविराम समझौता न हो गया।
युद्ध विराम समझौता
50 दिवसों के युद्ध के बाद 26 अगस्त, 2014 को मिस्र की मध्यस्थता के उपरांत दोनों पक्ष युद्धविराम के लिए सहमत हुए जिसकी उसी दिन घोषणा कर दी गई। 50 दिनों के युद्ध में-
- 2000 से अधिक गाजा निवासी मारे गए। सं.रा. के अनुमान के अनुसार इनमें लगभग तीन-चौथाई नागरिक थे और उनमें भी 500 से अधिक बच्चे थे।
- 11000 गाजा निवासी घायल हुए।
- 5 लाख से अधिक गाजा निवासी विस्थापित हुए।
- 66 इस्राइली सैनिक, 5 इस्राइली नागरिक (जिसमें 1 बच्चा था) तथा 1 थाई नागरिक मारा गया।
- हमास के 10 हजार रॉकेटों के स्टाक में दो तिहाई या तो प्रयुक्त हो गये या नष्ट कर दिए गए।
- गाजा की 34 सुरंगों को नष्ट किया गया।
ऐसा नहीं है कि यह पहली बार है जब हमास एवं इस्राइल के मध्य युद्ध और युद्धविराम समझौता हुआ हो। इसके पूर्व दिसंबर, 2008 में इस्राइल ने हमास के रॉकेट हमलों के प्रत्युत्तर में ‘ऑपरेशन कास्ट लीड’ (Operation Cost Lead) चलाया था जिसे 22 दिनों के उपरांत इस्राइल ने एक तरफा तौर पर बंद कर दिया था। 14 नवंबर, 2012 को इस्राइल ने हमास के रॉकेट हमलों से परेशान होकर ‘ऑपरेशन पिलर ऑफ डिफेंस’ चलाया था जो तब तक चला जब तक कि 21 नवंबर को मिस्र की मध्यस्थता से युद्धविराम समझौता न हो गया।
बार-बार संघर्ष होता क्यों है?
गाजा पट्टी में बार-बार ऐसे संघर्ष होते हैं जिनमें निर्दोष नागरिक मारे जाते हैं और संपत्ति का भी खासा नुकसान होता है। दरअसल जब 2005 में इस्राइल ने इस क्षेत्र से अपनी सेना हटाई तो गाजा को पूरी तरह मुक्त नहीं किया। उसे आशंका थी अरब देश गाजा के माध्यम से उसे तंग कर सकते हैं। यही कारण है कि उसने गाजा में अपना हस्तक्षेप जारी रखा। कभी भी उसकी सेना घुस सकती थी, तलाशी ले सकती थी और तो और भूमध्य सागर की ओर जलीय सीमा पर भी उसने अपना नियंत्रण बरकरार रखा। दुश्वारियों में जी रही गाजा की जनता ने 2006 में शासन के लिए जब कट्टरपंथी संगठन हमास को अपना समर्थन दिया तब स्थितियां और बिगड़ गईं। इस्राइल ने गाजा पर कड़े आर्थिक एवं राजनीतिक प्रतिबंध लगाए। सीमा से कोई सामान इधर से उधर या उधर से इधर आने पर रोक लगा दी गयी। इस्राइल इस प्रतिबंध को इस आधार पर औचित्यपूर्ण मानता था कि इससे कट्टरपंथी संगठन हमास को हथियारों की आपूर्ति पर रोक लगाई जा सकेगी। प्रतिबंधों के कारण गाजा में आवश्यक सामग्री का भी परिवहन बंद हो गया। इसी कारण हमास इन प्रतिबंधों को हटाए जाने की मांग करता है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इन प्रतिबंधों को अवैध मानता है और इसे गाजा की जनता को सामूहिक सजा के तौर पर देखता है।
दोनों पक्षों के तर्क क्या हैं?
हमास एवं इस्राइल के बीच दुश्मनी इतनी है कि हमास ने अपने चार्टर में इस्राइल को समाप्त करने का लक्ष्य घोषित कर रखा है। दूसरी ओर इस्राइल एवं अमेरिका हमास को आतंकवादी संगठन मानते हैं और इसे नष्ट कर देना चाहते हैं। यही वजह है कि दोनों एक-दूसरे पर हमले करते हैं। हमले के पक्ष में दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्क भी हैं।
इस्राइल का कहना है कि ‘आत्म रक्षा’ (Self Defence) उसका अधिकार है और हमास से अपनी रक्षा के लिए वह उस पर हमले करता रहेगा। दूसरी ओर हमास का कहना है कि इस्राइल ने प्रतिबंधों को लगाकर गाजा की जनता का जीवन दुष्कर कर दिया है। उसे इस्राइल की घुसपैठ के विरुद्ध प्रतिरोध का अधिकार है।
अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार किसी देश को आत्मरक्षा के अधिकार के तहत हमले की छूट किसी स्वतंत्र देश के विरुद्ध होती है लेकिन गाजा अभी भी संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार ‘कब्जा क्षेत्र’ (Occupied Area) है। आकुपेशन कन्वेंशन के अनुसार कब्जा किए गए क्षेत्र पर कब्जा करने वाला देश आत्मरक्षा के अधिकार के नाम पर हमला नहीं कर सकता है। उसकी जिम्मेदारी तो कब्जा किए गए क्षेत्र की जनता की रक्षा की भी होती है। अब प्रश्न उठता है कि क्या गाजा कब्जा किया गया क्षेत्र है? इसका उत्तर नहीं हो सकता है क्योंकि इस्राइल ने यहां से 2005 में ही अपने सेनाएं हटा ली थीं। इसका उत्तर हां हो सकता है क्योंकि गाजा की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर इस्राइल का ही कब्जा है। दूसरी ओर यह भी सच है कि हमास की सशस्त्र शाखा ‘इजेदीन अलकसम ब्रिगेड’ (IZZ ad-Din al-Qassam Brigade) इस्राइल के विरुद्ध हमले करती है। वास्तविक स्थिति यही है कि दोनों पक्ष एक-दूसरे से शत्रुता निभाने के लिए हमले कर रहे हैं और इसके पक्ष में तर्क के साथ ही कुतर्क भी प्रस्तुत कर रहे हैं।
शोषित और दमित जनता निश्चित रूप से प्रतिरोध का अधिकार रखती है। गाजा में एक तिहाई भूमि पर गाजा निवासियों को रोक दिया गया है तथा 85% मत्स्ययन क्षेत्र में उनकी पहुंच को प्रतिबंधित कर दिया गया है। इन परिस्थितियों में निश्चित रूप से जनता का प्रतिरोध प्रस्फुटित होगा लेकिन प्रतिरोध के नाम पर आतंकवादी हमलों का समर्थन कतई नहीं किया जा सकता है। गाजा के हमास शासित होने के कारण भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा इस्राइल का मुखर विरोध प्रतिध्वनित नहीं हो पाता।
नई स्त्रातजिक एवं राजनीतिक स्थितियां
इस्राइल हमास संघर्ष को कुछ नई स्त्रातजिक एवं राजनीतिक परिस्थितियों ने भी प्रेरित किया है। इनमें से एक है गाजा की सुरंगें।
जब हमास पर इस्राइल ने आर्थिक प्रतिबंध लगाए तब हमास ने विगत दशक में एक रणनीति के तहत सैकड़ों सुरंगें बना डालीं। विशेषकर मिस्र से ये सुरंगें हथियार एवं अन्य जरूरी सामानों को गाजा में परिवहन का सुरक्षित माध्यम थीं। इधर मिस्र में जब राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी पदच्युत हुए तो वहां की सैनिक सरकार ने हमास से सहयोग करना बंद कर दिया। इन सुरंगों से सामानों की आपूर्ति लगभग बंद हो गयी थी। इस समय इस्राइल ने सुरंगों को नष्ट करने का उपयुक्त अवसर देखा। सुरंगों के माध्यम से सामान न आ पाने के कारण गाजा की जनता बेहद त्रस्त थी जिससे ध्यान बंटाने के लिए हमास भी युद्ध की फिराक में था। सीरिया में असद विरोधी गठबंधन का समर्थन करने के कारण सीरिया सरकार भी हमास विरोधी हो गयी थी।
एक नवीन राजनीतिक घटनाक्रम फिलिस्तीन में यह घटित हुआ कि अपने विपरीत परिस्थितियों से विवश होकर हमास गाजा में 2 जून, 2014 को ‘राष्ट्रीय यूनिटी सरकार’ (National Unity Government) के लिए सहमत हो गया था। इस सरकार में हमास की साझेदार एक बार फिर फतह पार्टी हो गयी थी।
चूंकि 3 इस्राइली किशोरों के अपहरण के सिलसिले में इस्राइल ने पहले पश्चिमी किनारा में ही अभियान छेड़ा था इसलिए हमास ने पश्चिमी किनारा के साथ समर्थन व्यक्त करने के अवसर के रूप में रॉकेट हमलों को देखा। हमास ने इससे यह दर्शा दिया कि संपूर्ण फिलिस्तीन के हितों के लिए लड़ने का माद्दा सिर्फ उसी में है।
किसको क्या मिला?
वास्तव में ताजा संघर्ष में किसी को कुछ भी नहीं मिला। गाजा के 2000 से अधिक निर्दोष नागरिक मारे गए। अरबों रुपये की संपत्ति नष्ट हो गई। इस्राइल ने जिन सुरंगों को नष्ट करने के लिए ऑपरेशन चलाया था वस्तुतः उन्हें नष्ट कर पाना इतना सरल नहीं है। कंक्रीट से बनी ये सुरंगें 65 फीट तक लंबी हैं और इनका प्रवेश मार्ग कोई घर या कोई अस्पताल या कोई मस्जिद है। शुरू से अंत तक इन्हें नष्ट कर पाना मुश्किल है। होता यह है कि शुरुआती कुछ फीट सुरंगें नष्ट होती हैं जिन्हें बाद में फिर निर्मित कर लिया जाना संभव है। इस युद्ध से दोनों पक्षों के बीच थोड़ी और कटुता अवश्य बढ़ गई है।
युद्धविराम और उसके बाद
युद्धविराम के बाद दोनों पक्षों ने इसे अपनी जीत बताया। हमास ने इसे ‘प्रतिरोध की जीत’ कहा जबकि इस्राइल के अनुसार ऑपरेशन के उद्देश्यों की पूर्ति हुई है।
मिस्र की मध्यस्थता में संपन्न युद्धविराम समझौते के प्रावधानों में गाजा क्रासिंग से प्रतिबंध हटाना तथा मानवीय सहायता की वस्तुओं तथा पुनर्निर्माण सामग्री के आवागमन की अनुमति शामिल है। हमास के अनुसार एयरपोर्ट एवं सीपोर्ट बनाने हेतु भी वार्ता की जाएगी। लेकिन इस्राइल ने एयरपोर्ट या सीपोर्ट जैसे प्रावधानों से इनकार किया है। युद्धविराम के बाद सबसे महत्त्वपूर्ण बात रही है 16 सितंबर को हुआ संयुक्त राष्ट्र संघ प्रायोजित समझौता। यह समझौता इस्राइल एवं फिलिस्तीनी अधिकारियों के बीच गाजा के पुनर्निर्माण के लिए हुआ है। संयुक्त राष्ट्र के अधीक्षण में पुनर्निर्माण सामग्री गाजा पहुंचाई जाएगी। संयुक्त राष्ट्र यह सुनिश्चित करेगा कि इस सामग्री का इस्तेमाल केवल नागरिक कार्यों में हो। संयुक्त राष्ट्र के विशेष संयोजक राबर्ट सेरी के अनुसार यह समझौता गाजा से प्रतिबंधों को हटाने की दिशा में एक कदम साबित होगा। पुनर्निर्माण हेतु दान प्राप्त करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन 12 अक्टूबर, 2014 को मिस्र में बुलाया गया है। अनुमान है कि गाजा के पुनर्निर्माण में 7 बिलियन डॉलर की लागत आएगी।
अब क्या हो?
संयुक्त राष्ट्र संघ हो या अन्य वैश्विक मंच, सभी पर फिलिस्तीन की आवाज अमेरिकी शक्ति के नीचे दब जाती है। ताजा हमलों के दौरान भी फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव को पत्र लिखकर मदद की अपील की थी किंतु सभी प्रयास निष्फल ही रहे। यह गाजा के लिए अच्छी बात है कि वहां राष्ट्रीय एकता सरकार का गठन हो चुका है जिससे इस्राइल अब यह बहाना नहीं बना सकेगा कि वह हमास से कोई बात नहीं करेगा। अब जरूरत यह है कि गाजा का पुनर्निर्माण हो और पुनर्निर्माण के बहाने वार्ता की जो प्रक्रिया शुरू हुई है उसे एक निर्णायक बिंदु तक पहुंचाया जाए।