एच. जी. वेल्स और जूल्सबर्न ने चांद और मंगल के बारे में जो लोमहर्षक विज्ञान गल्प (Science Fictions) लिखे, वे ही आगे चलकर अंतरिक्ष यात्राओं के निमित्त बने। उद्देश्य यह जानना था कि क्या वहां पर जीवन है और है तो कैसा है उसका स्वरूप?
इसकी पड़ताल के लिए हमें थोड़ी सी रोशनी इस बात पर डालनी होगी कि आखिर धरती पर जीवनोद्भव (Origin of Life) कैसे हुआ? सभी ग्रह सूर्य की पुत्र-पुत्रियां हैं तो आपस में भगिनी-भ्राताएं ही, इसी के मद्देनज़र संभावनाओं की तलाश की जा रही है कि कदाचित अन्यान्य ग्रह लोकों में जीवन का स्पंदन हो और जीवधारियों के पद चापों की अनुगूंज भी?
ऐसा अनुमान है कि पृथ्वी का निर्माण आज से चार-पांच सौ करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था। रूसी वैज्ञानिक ए.आई. ओपरिन (Conception Of Origin of Life, 1938) के अनुसार पृथ्वी पहले कास्मिक धूल और गैसों के एक गोले के रूप में विकसित हुई होगी। इस गैसीय पिंड के केंद्र में भारी तत्वों तथा इसके चारों ओर कुछ हल्के तत्वों ने एकत्रित होकर इसके मध्य भाग का निर्माण किया और सबसे हल्के तत्व यथा हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन आदि ने पृथ्वी के बाह्य वातावरण का निर्माण किया। शनैः – शनैः पृथ्वी ठंडी होती गई और इसमें उपस्थित अणुओं में आपस में क्रिया होने से जटिलतम अणुओं का निर्माण हुआ। इन अणुओं की आपसी क्रिया से पानी, कार्बन डाइऑक्साइड अमोनिया और मेथेन जैसे यौगिक निर्मित हुए, फिर इनकी अंतःक्रिया से जटिल कार्बनिक अणुओं यथा शर्करा, ग्लिसरॉल, फैटी अम्ल, एमीनो अम्ल, प्यूरीन और पिरीमिडीन आदि का निर्माण हुआ। इसकी पुष्टि भी डॉ. एस.एस. मिलर (1953) के प्रयोगों से हो चुकी है।
यहां यह जानना जरूरी है कि पृथ्वी का आदि वातावरण अवकारी (Reducing) था अर्थात् उसमें सर्वाधिक मात्रा में हाइड्रोजन थी और वह सर्वाधिक सक्रिय भी थी जिसके कारण हाइड्रोजन गैस, पानी, अमोनिया और मेथेन का संश्लेषण हुआ। मेथेन ही कार्बन यौगिक थी। धरती पर जीवनोद्भव के लिए दूसरा महत्त्वपूर्ण कारक कार्बन की उपस्थिति थी जिसकी चतुष्संयोजकता के कारण कार्बनिक अणुओं की लंबी-लंबी शृंखलाएं निर्मित हो सकती हैं, इसीलिए मेथेन (CH4) बन सकी। ओपरिन ने धरती पर जीवनोद्भव की प्रक्रिया को इसी नाते कार्बनिक विकास (Organic Evolution) की संज्ञा दी थी।
उक्त चारों यौगिकों ने आपसी संक्रिया से जिन 6 जटिल कार्बनिक अणुओं-शर्करा, ग्लिसराल, वसीय अम्ल, अमीनो अम्ल, प्यूरीन और पिरामिडीन-का निर्माण किया, वे ही पूर्वजीवी यौगिक (Pre-life compounds) थे और इन्हीं के आगे संश्लेषण (Further chemical evolution) से धरती पर आदि सागरों की गोद में जीवन पनपा।
ज्यों-ज्यों पृथ्वी ठंडी होती गई, वातावरण का जलवाष्प भी ठंडा होकर जमने लगा। वर्षा भी हुई और इस प्रकार सागरों का निर्माण हुआ। इसमें अब तक निर्मित कार्बनिक यौगिक घुलते गए तथा जीवन की उत्पत्ति के लिए एक समुचित वातावरण का विकास हुआ।
सरल शर्कराओं (Simple Sugars) से जटिल शर्कराओं (Complex Sugars), ग्लिसरॉल और वसीय अम्लों से वसाओं (Fats), अमीनो अम्लों के संयोजन से प्रोटीनों तथा प्यूरीन और पिरीमिडीन के आपसी संयोजन से डीएनए (De oxyribose Nucleic Acid) का संश्लेषण हुआ।
वैज्ञानिक कहते हैं कि यदि प्रोटीन का संश्लेषण हो गया तो समझिए कि जीवन का उद्भव हो गया। डीएनए भी प्रोटीन ही है और सबसे भारी अणु है। डीएनए ही वह मूल तत्व है जो पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे आनुवंशिक लक्षणों का हस्तांतरण करता है। अतः यदि किसी ग्रह लोक में जीवन की संभावना बलवती प्रतीत होती है तो वहां पर डीएनए के अवशेष अवश्य होने चाहिए। अन्यथा सारी संभावनाएं खारिज की जा सकती हैं। यह भी सच है कि यदि मेथेन न बनी होती तो धरती पर जीवनोद्भव की शृंखला आगे बढ़ ही नहीं पाती। ऐसा अनुमान है कि मंगल पर मेथेन उपस्थित है। मगर मेथेन वहीं हो सकती है जहां पर पानी है और स्थिर जलाशय (Stagnant Water) भी हों। दूसरी बात यह कि किसी ग्रह लोक में हाइड्रोजन है तो इस बात की संभावना प्रबल है कि वहां पर ज़िदंगी की शुरुआत हो सकती है, यद्यपि आज तक के सभी चंद्र अभियानों में इसकी पुष्टि नहीं हुई है।
जीवनोद्भव की प्रक्रिया में हाइड्रोजन और कार्बन की अहम भूमिका है और यदि ये दोनों तत्व हैं तो मेथेन का संश्लेषण हो सकता है। हमारे मार्स आर्बिटर का भी उद्देश्य मंगल पर हाइड्रोजन/ड्यूटेरियम के बारे में गहन संधान करना है और मेथेन की खोज करनी है ताकि इस चिर प्रतीक्षित पहेली का पटाक्षेप हो सके।
अब तक के मंगल अभियानों की निष्पत्तियां
भारत का मंगलयान (Mars Orbiter Mission-MOM) भी 24 सितंबर, 2014 को मंगल की कक्षा में प्रविष्ट हो गया और इसका भी निमित्त मंगल पर पानी, मेथेन और जीवन का अन्वेषण करना है।
हमारे मार्स मिशन से पूर्व मंगल पर पानी और जीवन की तलाश के लिए अब तक 51 अंतरिक्ष अन्वेषी यान (Space Probes) भेजे जा चुके हैं जिसमें से मात्र 21 मिशन ही कामयाब रहे हैं मगर इन सारे मंगल अभियानों और उनके द्वारा मंगल अन्वेषणों से वहां पर जीवन का कोई साक्ष्य नहीं मिला है।
फिर भी हम मात्र उन अभियानों की चर्चा करेंगे जिन्होंने इस दिशा में हमारी जिज्ञासाओं का शमन किया गया। भले ही उन्हें वहां पर जीवन का कोई साक्ष्य नहीं मिला।
- सबसे पहली बार अमेरिकी यान ‘मेरिनर-9’ (1971) से यह जानकारी मिली कि मंगल पर धूल भरी आंधियां उठती हैं। जब यह मंगल की कक्षा में पहुंचा, तब वहां ऐसा ही माहौल था। जब ये आंधियां एक माह बाद बंद हुईं तो इसने मंगल की ज्वालामुखियों और खाइयों की तस्वीरें भेजीं। इस अभियान की सबसे बड़ी खास बात यह थी कि इसने वहां पर मृत नदियों की तलहटियों के निशान देखे। ऐसी ही तस्वीरों से यह प्रत्याशा बलवती हुई कि कभी मंगल पर नदियां थीं जो कालांतर में कालातीत हो गईं।
- ‘मार्स-3’ (1971) सोवियत संघ का मंगलयान था जिसमें आर्बिटर और लैंडर दोनों संलग्न थे। इसका लैंडर मंगल की सतह पर सही सलामत उतर तो गया मगर वह मात्र 20 सेकंड तक ही मंगल की सतह की तस्वीरें भेजने में कामयाब रहा। ऐसा माना जाता है कि मंगल के धूल भरे माहौल में इसने काम करना बंद कर दिया। वैसे भी इसने जो तस्वीरें भेजीं भी, वे कोई खास नहीं थीं। हां, इस मिशन की खास उपलब्धि यह थी कि इसका आर्बिटर 8 महीनों तक (जुलाई, 1972) मंगल संबंधी आंकड़ों का प्रेषण करता रहा।
- मंगल के अध्ययन के दृष्टिकोण से अमेरिकी ‘वाइकिंग’ मिशन (1975) की खास अहमियत है। दोनों मिशनों ‘वाइकिंग-1’ और ‘वाइकिंग-2’ में आर्बिटर और लैंडर दोनों संलग्न थे। अमेरिकी वाइकिंग मिशनों का उद्देश्य था-मंगल की सतह की तस्वीरें खींचना, मंगल के वातावरण के बारे में हमारी जिज्ञासाओं का शमन करना और इस तथ्य का गहन अन्वेषण करना और संपुष्टि भी कि क्या वहां पर जीवन है अथवा उसके अवशेष विद्यमान हैं? यद्यपि ‘वाइकिंग’ यानों को अपनी अन्वेषण यात्रा में वहां पर जीवन के कोई साक्ष्य नहीं मिले लेकिन इन यानों को मंगल की सतह पर उन सभी तत्वों को खोजने में कामयाबी अवश्य मिली जो धरती पर जीवन के लिए वांछनीय हैं। वाइकिंग मिशन के दोनों लैंडरों ने मंगल की सतह की 4500 तस्वीरें खींची जबकि दोनों आर्बिटरों ने 5200 तस्वीरें खींची और मंगल संबंधी हमारे आरंभिक ज्ञान में अभिवृद्धि की।
- अपने वाइकिंग मिशनों की पूर्ण सफलता के बाद अमेरिका ने 1996 में अपने दो अतीव महत्त्वांकाक्षी मिशनों ‘मार्स ग्लोबल सर्वेयर’ और ‘मार्स पाथ फाइंडर’ को लांच किया। कहना न होगा कि इन मिशनों से प्रेषित आंकड़ों/तस्वीरों ने हमारे मंगल संबंधी ज्ञान में और अभिवृद्धि की और विगत मिशनों की कुछेक लब्धियों की पुष्टि भी की।
‘मार्स ग्लोबल सर्वेयर’ ने मंगल की सतह पर अब तक भेजे गए किसी अंतरिक्ष अन्वेषी यान की तुलना में अधिक समय तक काम किया और मंगल के बारे में हमारी समझ विकसित की। सबसे पहली बार इसी यान ने मंगल पर पानी से जुड़े खनिजों की उपस्थिति का अन्वेषण किया लेकिन पानी की उपस्थिति का कोई साक्ष्य नहीं जुटा सका।
इसने जो भी तस्वीरें भेजीं, उनमें मंगल पर कभी मौजूद रहे पानी (?) की तलहटियों के चित्र थे। यद्यपि आज तक मंगल पर पानी की उपस्थिति के स्पष्ट साक्ष्य नहीं मिल सके हैं। यह अनुमान मात्र है, संपुष्टि अभी बाकी है।
- उसी वर्ष (1996) प्रेषित अमेरिकी मंगल मिशन ‘पाथ फाइंडर’ ने मंगल की सतह के बारे में कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां अवश्य एकत्र की लेकिन वहां पर पानी और जीवन की तलाश पर कोई रोशनी नहीं डाल सका जो आज तक भी यक्ष प्रश्न ही है।
- वर्ष 2003 में अमेरिका ने ‘मार्स एक्सप्लोरेशन’ मिशन के तहत मंगल की सतह पर अपने रोवरों ‘स्पिरिट’ और ‘अपार्च्युनिटी’ को उतारने में कामयाबी हासिल की। अनुमानों से कहीं अधिक दोनों रोवरों ने 15 गुना अधिक काम किया। अब ये निष्क्रिय हो चुके हैं। फिर भी मूल प्रश्न जीवन और पानी की खोज अभी भी अनुत्तरित हैं।
भारत भी ‘मार्शियन क्लब’ में शामिल
यद्यपि मंगल संस्पर्श के अब तक 51 बार प्रयास किए जा चुके हैं लेकिन इस उपक्रम में मात्र 21 मंगल अभियान सफल रहे हैं। इस प्रकरण में खास बात यह है कि किसी भी राष्ट्र को अब तक अपने प्रथम प्रयास में मंगल संस्पर्श की दिशा में विफलता ही हाथ लगी है। अब भारत ऐसा पहला राष्ट्र बन गया है जिसने अपने पहले ही प्रयास में 24 सितंबर, 2014 को मंगल की कक्षा में अपने मंगलयान (Mars Orbiter Mission) की सफल स्थापना करके एक विश्व कीर्तिमान बनाया है। इसी के साथ भारत ‘मार्शियन इलीट क्लब’ (अमेरिका, रूस और यूरोपीय संघ) में प्रवेश कर चुका है और ऐसी उपलब्धि अर्जित करने वाला पहला एशियाई मुल्क भी बन चुका है। चीन और जापान ने भी ऐसी कोशिशें की थीं लेकिन वे नाकामयाब रहें।
5 नवंबर, 2013 को हमारे ध्रुवीय रॉकेट (PSLV-C25) ने सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से दोपहर 2:38 बजे उड़ान भरी और 44 मिनटों की यात्रा के बाद इसने हमारे मंगलयान को पृथ्वी की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया। रॉकेट ने मंगलयान को 247 किमी. × 23,566 किमी. की दीर्घवृत्ताकार कक्षा में स्थापित कर दिया। यान को मंगल की कक्षा में स्थापित करने की प्रक्रिया 6 चरणों में संपन्न हुई।
7 नवंबर, 2013 को यान के कक्षोन्नयन की प्रक्रिया आरंभ हुई। ‘इस्ट्रैक’ (इसरो टेलीमेट्री ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क), बंगलोर के वैज्ञानिकों ने 7 नवंबर की भोर में 1:17 बजे यान के 440 न्यूटन इंजन के प्रज्वलन की कमान भेजी। इस इंजन को तकनीकी भाषा में ‘लैम’ (Liquid Apogee Motor-LAM) कहते हैं जो धक्का दे-देकर यान को अपनी कक्षा से विचलित नहीं होने देती है। इसी को नोदन प्रणाली (Propulsion System) भी कहते हैं। इंजन 7 मिनट तक प्रज्वलित रहा और इसने यान की कक्षा वर्धित कर दी। अब इसकी धरती से उच्चतम दूरी (Apogee) 23,566 किमी. से बढ़कर 28,825 किमी. हो गई और निम्नतम दूरी (Perigee) 247 किमी. से बढ़कर 252 किमी. हो गई।
आगे चलकर क्रमशः 8 नवंबर, 9 नवंबर, 16 नवंबर, 2013 को इसकी कक्षोन्नयन की प्रक्रियाएं सकुशल संपन्न हो गईं।
यान के कक्षोन्नयन की आखिरी प्रक्रिया 30 नवंबर/1 दिसंबर, 2013 की रात को 12:42 बजे आरंभ हुई और प्रायः 25 दिनों तक धरती की परिक्रमा करने के बाद यान को भू-केंद्रिक कक्ष (Earth Centric Orbit) से बाहर निकालकर उसे सूर्य केंद्रिक कक्ष (Sun Centric Orbit) में डाल दिया गया और पूर्व योजना के अनुसार तब से लेकर 300 दिनों तक यान सूर्य की प्रदक्षिणा करता रहा और अंततः 24 सितंबर, 2014 को मंगल की कक्षा में प्रविष्ट हो गया।
अंततः मंगल की कक्षा में हमारा मंगलयान
प्रायः 300 दिनों तक 440 न्यूटन इंजन शीतनिद्रा में निमग्न था, अतः उसे जाग्रत करना था ताकि यान की मंगल की कक्षा में प्रविष्टि की प्रक्रिया संपन्न हो सके। इसके लिए 20 सितंबर, 2014 को दोपहर ढाई बजे इसकी ‘लैम’ मोटर को 4 सेकंडों तक दागा गया और यह उपक्रम पूरी तरह सफल रहा।
और लीजिए, वह बेला आ ही गई जब हमारे मंगलयान ने अपने लक्ष्य को पा लिया।
24 सितंबर, 2014 की प्रातः 7:17 बजे इसके 440 न्यूटन इंजन (लैम मोटर) को दागा गया जिसका प्रज्वलन 24 मिनटों तक जारी रहा। ‘लैम’ मोटर के साथ 8 छोटे थ्रस्टर्स भी क्रमशः दागे गए। इसका मकसद यान की गति को कम करना था ताकि यह मंगल के गुरुत्वाकर्षण से खिंचकर उसकी कक्षा में प्रविष्ट हो जाय और इस तरह 8:02 बजे हमारा मंगलयान मंगल की कक्षा में प्रविष्ट हो गया।
इस मिशन की सबसे बड़ी खास बात तो यह है कि इसकी कुल लागत 450 करोड़ रुपये आई है और हमारे साथ ही अमेरिका ने अपना जो मंगलयान ‘मावेन’ (Mars Atmospere and Volatile Evolution Mission-MAVEN) भेजा है, उसकी लागत हमारे यान से कहीं 10 गुना अधिक है। मंगलयान के निमित्त जो राशि हमने व्यय की है, उससे कहीं अधिक राशि तो हमें अपने इन्सैट/जीसैट उपग्रहों की लांचिंग के लिए एरियन स्पेस एजेंसी (फ्रांस) को देनी पड़ती है। इस नज़रिए से देखें तो ‘इसरो’ की यह बेमिसाल कामयाबी अविश्वसनीय सी प्रतीत होती है।
हमारे मंगलयान के लक्ष्य?
हमारे मंगलयान के लक्ष्य वहीं हैं जो अब तक के मंगल अभियानों के थे। हमारा मार्स आर्बिटर मंगल अन्वेषण हेतु 5 नीतिभार (Payloads) ले गया है जिनके उद्देश्य इस प्रकार हैं:-
- इसका ‘लैप’ (लाइमन अल्फा फोटोमीटर) वहां पर ड्यूटेरियम और हाइड्रोजन की सापेक्षिक प्रचुरता की माप करेगा। इससे मंगल के ऊपरी वायुमंडल में पानी की क्षति का आकलन किया जा सकेगा।
- इसका मेथेन सेंसर (Methane Sensor for Mars-MSM) मंगल के वातावरण में मेथेन का मापन करेगा (यदि वहां पर मेथेन है?) और इसके स्रोतों की जानकारी भी प्राप्त करेगा।
- इसका तीसरा पेलोड ‘मेन्का’ (Mars Exospheric Neutral Composition Analyser-MENCA) द्रव्य विश्लेषक है जो मंगल के बहिर्मंडल में उपस्थित कणों के निष्क्रिय संगठन का विश्लेषण करेगा।
- इसका चौथा नीतिभार तापीय अवरक्त स्पेक्ट्रोमीटर (Thermal Infrared Imaging Spectrometer-TIS) है जो मंगल की सतह के ताप को मापेगा और मंगल की सतह के संगठन का अन्वेषण करके वहां पर खनिजों की खोज करेगा।
- पांचवां नीतिभार मार्स कलर कैमरा है जो हमें मंगल की सतह के चित्र भेजेगा।
मंगल की कक्षा में प्रवेश करने के बाद अगले ही दिन हमारे यान ने मंगल की सतह के चित्र भेजने आरंभ कर दिए हैं। पहले-पहले फोटोग्राफ में वहां पर बड़े-बड़े क्रेटर नज़र आ रहे हैं जो अत्यंत ही लोमहर्षक दृश्य है। हमारा मंगलयान 6 महीनों तक मंगल की परिक्रमा करते हुए उसका अन्वेषण करेगा।
हो सकता है कि हमारा मिशन इस बात पर रोशनी डाल सके कि क्या मंगल पर जीवन की सुप्त धड़कनें हैं? हमारी यही सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।